मरीज की जगह नशे का सामान, अपनी बातों में फंसा ड्राइवर; एंबुलेंस से मिला 218 किलो गांजा

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जिंदगी की तलाश में भागने वाली एंबुलेंस अब नशा तस्करी के काम भी आ रही है। अल्मोड़ा की भतरौंजखान पुलिस ने एक एंबुलेंस की चेकिंग की तो पुलिस कर्मियों की आंखें खुली ही रह गईं। एंबुलेंस से 218 किलो गांजा बरामद हुआ है। जिसकी कीमत लगभग 32 लाख रुपए हैं। एंबुलेंस ड्राइवर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कंडक्टर फरार है। सायरन बजाते एक तेज रफ्तार एंबुलेंस सोमवार देर शाम मोहान बैरियर के पास पहुंची।

भतरौंजखान एसओ मदन मोहन जोशी ने बताया कि अंधेरा होने के कारण पहाड़ी रास्ते पर संभाल कर चलने की हिदायत देने के लिए एंबुलेंस को रोका गया। बातचीत के दौरान पुलिस को ड्राइवर-कंडक्टर पर शक हुआ। तलाशी में एंबुलेंस में मरीज की जगह 16 कट्टों में 218 किलो गांजा मिला। आरोपी ने अपना नाम रोशन लाल पुत्र चमन लाल (38) जबकि फरार व्यक्ति धर्मेंद्र पुत्र राजेंद्र निवासी ग्राम स्युन्सी थाना थैलीसैण पौड़ी गढ़वाल है। मामले में आगे की जांच की जा रही है।

अल्मोड़ा के एसएसपी आरसी राजगुरु ने कहा, ‘नशा तस्करी की रोकथाम के लिए थाना-चौकियों की पुलिस अलर्ट है। बीते कुछ समय में भारी मात्रा में चरस गांजा बरामद किया है। पुलिस का अभियान आगे भी जारी रहेगा।’

कैसे पकड़ा गया गांजा

पुलिस ने अंधेरे में पहाड़ पर आराम से गाड़ी चलाने की हिदायत देने के लिए एंबुलेंस को रोका। बातचीत के दौरान पुलिस को शक हुआ क्योंकि एंबुलेंस का सायरन बज रहा था और चालक जल्दी से चेकपॉइंट को पार करना चाहता था। ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि वह एक गंभीर रूप से बीमार मरीज को रामनगर के एक अस्पताल ले जा रहा है। हालांकि, पुलिस को एबुलेंस के अंदर 16 बोरी गांजा मिले। चालक पौड़ी गढ़वाल के स्यूंसी निवासी रोशन कुमार को हिरासत में ले लिया गया, जबकि उसका साथी धर्मेंद्र भाग गया।

ड्राइवर-कंडक्टर पर मामला दर्ज

पुलिसने बताया कि गांजा तस्करी में प्रयुक्त वाहन को जब्त कर लिया गया है। ड्राइवर और उसके साथी दोनों पर एनडीपीसी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि गांजा सराईखेत में एक व्यक्ति द्वारा सप्लाई किया गया था और इसे काशीपुर पहुंचाया जाना था। मंगलवार शाम को भतरौंजखान पीएस प्रभारी मदन मोहन जोशी ने कहा कि ड्राइवर को एक एनजीओ द्वारा मोबाइल मेडिकल एंबुलेंस संचालित करने के लिए नियुक्त किया गया था और इसका इस्तेमाल डॉक्टरों को ग्रामीण इलाकों में ले जाने के लिए किया जाता था।

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